वैद्युतिक केबिल्स एवं सोल्डरिंग

वैद्युतिक केबिल्स एवं सोल्डरिंग

• एक से अधिक तारों को ऐंठकर बनाई गई कोर, स्ट्रैण्डेड कोर कहलाती है। 
• वैद्युतिक चालकों में जोड़ की किस्म, तार/केबिल (चालक) की मोटाई तथा उद्देश्य पर निर्भर करती है। 
• 2 मिमी तक मोटाई वाले एकल चालकों में बिना किसी तीसरे तार की सहायता से तैयार जोड़, टैप जोड़ कहलाता है।
• केबिलों में तारों की मोटाई एवं संख्या, विद्युत धारा वहन क्षमता के अनुरूप रखी जाती है।
•  वल्कैनाइज्ड रबर, ऊष्मीय प्रक्रिया द्वारा गंधक और जिंक ऑक्साइड को मिलाकर तैयार किया जाता है। 
• 180°C पर दहनीय पदार्थ एबोनाइट में 30% से 40% गंधक होता है और यह अम्लों से क्रिया करने में सक्षम है।
• रेजिन, एक प्रकार का संश्लेषित पदार्थ है, जो बैकलाइट बनाने में प्रयोग होता है, जिससे सामान्यतः अचालक खोल बनाए जाते हैं। 
• पोर्सिलेन का प्रयोग ओवरहैड लाइन हेतु अचालक, किट-कैट फ्यूज, स्विच, हीटिंग ऐलीमेंट के लिए प्लेटें आदि बनाने में किया जाता है।
• अर्द्धचालक पदार्थ, शुद्ध अवस्था एवं कम तापमान पर अचालक तथा अशुद्धि मिलाने अथवा तापमान बढ़ाने पर चालक में परिवर्तित हो जाते हैं। 
• घरेलू वैद्युतिक वायरिंगों में प्रयुक्त तार 14 अथवा 165SWG के तथा शिरोपरि लाइनों में प्रयुक्त तार 6 अथवा 8SWG के होने चाहिए। 
• ACSR तार 5-6 एल्युमीनियम के तारों के बीच में एक स्टील का तार रखकर स्ट्रैण्डेड तार के रूप में बनाया जाता है।
• CTS केबिल का अन्य नाम टफ रबर शीथ्ड केबिल है, जिसका प्रयोग नमी वाले स्थानों की वैद्युतिक वायरिंग में किया जाता है। 
• अति उच्च श्रेणी की वोल्टेज 22000 वोल्ट अर्थात् 22kV से अधिक होती है, जबकि 22000V तक की वोल्टेज, उच्च श्रेणी की वोल्टेज के अन्तर्गत आती है। 
• भूमिगत केबिल एक या एक से अधिक विद्युत चालकों से बनी केबिल होती है, जो अचालक पदार्थों के आवरण से सुरक्षा की दृष्टि से ढकी होती है। 
• भूमिगत केबिल में प्रयुक्त चालक का आकार इस प्रकार का होना चाहिए कि इसमें इच्छित मान की विद्युत धारा बिना ओवरहीटिंग तथा वोल्टेज ड्रॉप के प्रवाहित हो सके। 
• भूमिगत केबिल का चालक भाग कोर होता है, जिसमें से होकर विद्युत धारा प्रवाहित होती है। 
• भूमिगत केबिल की कोर को नमी से बचाने के उददेश्य से लैड या एल्युमीनियम का धात्विक कवच चढ़ाया जाता है।
• रबर का प्रयोग उच्च वोल्टेज वाले केबिलों में नहीं किया जाता है, क्योंकि यह उच्च तापमान सहने में असमर्थ होता है। 
• वल्कनित बिटुमिन पर नमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु यह 50°C से अधिक तापमान सहने में असमर्थ है। 
• इनेमल अवरोधन विद्युत मापक यन्त्रों तथा मोटर वाइण्डिंग में प्रयोग किया जाता है। 
• हाई टेन्शन केबिल 1kV से 11 kV तक तथा सुपर टेन्शन केबिल 11 kV से 33 KV तक के वोल्टेज पर कार्य कर सकते हैं।
• MI केबिल का सम्पूर्ण नाम मिनरल इन्सुलेटेड केबिल तथा XLPE केबिल का सम्पूर्ण नाम क्रॉस लिंक्ड पॉली एलीलीन केबिल होता है।
• बैल्टेड केबिल की प्रत्येक कोर संयुक्त रूप से कागज की पटियों द्वारा इन्सुलेट की जाती है। 
• शील्डेड केबिल सामान्यतः 22 kV से 66 kV के उच्च वोल्टेज हेत प्रयोग किए जाते हैं। 
• PILC केबिल्स सामान्यतः पेपर इन्सुलेटेड,बैल्टेड प्रकार के केबिल्स होते है 
• दाब केबिल के सिरों को केबिल की स्थापना करते समय ही भली-भाँति सील कर देना चाहिए, जिससे की केबिल का ऑयल लीक न हो। 
• भूमिगत केबिल को सीधे बिछाने से केबिल अदृश्य तथा बाहरी प्रभावों से मुक्त होने के कारण साफ तथा सुरक्षित रहता है। 
• यदि भूमिगत केबिल का कोई तार किसी दुर्घटनावश कट जाए या फिर केबिल चालक के जोड़ खुल जाए, तो यह ओपन-सर्किट दोष कहलाता है। 
• केबिल में शॉर्ट-सर्किट दोष उत्पन्न होने से उनमें धारा अत्यधिक बढ़ जाती है, जिससे केबिल जलकर नष्ट हो सकते हैं।
• इलेक्ट्रॉनिक मल्टीमीटर को ओम परास में रखकर, प्रत्येक दो तारों में विक्षेप देखकर, भूमिगत केबिल के दोषों का पता लगाया जा सकता है। 
• दो समान या भिन्न धातुओं के तारों, टुकड़ों आदि को ऊष्मीय प्रक्रिया द्वारा किसी तीसरी धातु की सहायता से जोड़ने की प्रक्रिया सोल्डरिंग कहलाती है। सोल्डरिंग सामान्यतः एक अर्द्ध-स्थायी जोड़ होता है। 
• सोल्डरिंग में प्रयोग की जाने वाली तीसरी धातु फिलर धातु या सोल्डर कहलाती है। यह प्रायः सीसा तथा टिन का मिश्रण होती है। 
• फिलर धातु या सोल्डर का गलनांक सदैव जोड़े जाने वाली धातुओ के गलनांक से कम होता है। 
• सिल्वर सोल्डर का गलनांक, स्पैल्टर सोल्डर के गलनांक से कम होता है, इसलिए इसका प्रयोग सोना, चाँदी, जर्मन सिल्वर आदि धातुओं की वस्तुओं में टाँका लगाने के लिए किया जाता है। 
• नर्म सोल्डर का गलनांक सिल्वर सोल्डर के गलनांक से भी कम होता है। यह टिन व सीसा से मिलकर बना होता है।
• सोल्डरिंग करते समय सोल्डर के अतिरिक्त पाउडर अथवा पेस्ट के रूप में प्रयोग किया गया अधात्विक मिश्रण, फ्लक्स कहलाता है। 
• फ्लक्स का चयन सोल्डरिंग की पद्धति, सोल्डर के कार्यकारी तापमान तथा जुड़ने वाली धातु के आधार पर किया जाता है। 
• ताँबे के तारों की सोल्डरिंग करने के लिए जिंक क्लोराइड, अमोनियम क्लोराइड तथा रेजिन या फ्लक्साइट प्रयोग किया जाता है।
• सोना व चाँदी की सोल्डरिंग में जिंक क्लोराइड, अमोनियम क्लोराइड तथा रेजिनयुक्त फ्लक्स का प्रयोग किया जाता है। 
• सोल्डरिंग आयरन की टिप ताँबे की बनी होती है। 
• सोल्डरिंग आयरन की अपेक्षा ब्लो-लैम्प से जोड़ जल्दी एवं अधिक गर्म हो जाता है। 
• स्वीटिंग विधि में जिस पार्ट को जोड़ना होता है, उसकी सतह पर पहले टिनिंग की जाती है।
• सोल्डरिंग आयरन की बिट गर्म होने के बाद टिनिंग करने के लिए उसक बिट पर सोल्डर की एक पर्त चढ़ाई जाती है, जिसे टिनिंग कहते है। 
• सोल्डरिंग गन द्वारा सोल्डरिंग करने में ओवरहीटिंग होने की प्रबल सम्भावना होती है। 
• सोल्डरिंग द्वारा शुष्क जोड़ नहीं बनाने चाहिए, क्योंकि शुष्क जोड़ों में से विद्युत धारा का 100% प्रवाह स्थापित नहीं हो पाता है। 
 

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