क्या गरीबी एक सोच है ?

क्या गरीबी एक सोच है ?

क्या गरीबी एक सोच है ?

अथवा गरीबी या निर्धनता जीवन जीने के साधनों या इस हेतु धन के अभाव की स्थिति है।

गरीबी एक सोच है यह वही सोच सकता है जो भारत को जनता नही हो या उसने कभी गरीब और गरीबी देखि नही हो इसलिय मै इस सोच को नकारता हु । गरीबी उन वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति का अभाव है जो व्यक्ति तथा उसके परिवार के स्वास्थ्य और कुशलता को बनाये रखने में आवश्यक है। इस प्रकार केवल भोजन, वस्त्र और आवास के प्रबन्ध से ही निर्धनता की समस्या समाप्त नहीं हो जाती. बल्कि व्यक्तियों के लिए ऐसी वस्तुएँ भी प्राप्त होना आवश्यक है जिससे स्वास्थ्य और कुशलता का एक सामान्य स्तर बनाये रखा जा सके।

आज के परिपेक्ष में देखें तो पर्याप्त धन होने के बावजूद भी यदि कोई अपने को स्वस्थ बनाये रखने के लिए आवश्यक वैक्सीन व दवा प्राप्त नही कर सकता तो वह गरीब है। चाहे उसकी तिजोरी या बैंक खाते मे कितना ही धन हो।

केंद्रीय बजट 2020-21 को वितरित करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि 2006 से 2016 तक 10 वर्षों में, 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया था।  पिछले साल, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 2011 और 2016 के बीच 90 मिलियन भारतीय अत्यधिक गरीबी से बच गए थे, जो कि मजबूत आर्थिक विकास के कारण काफी हद तक था।  लेकिन यह भी ध्यान दिया कि 176 मिलियन भारतीय अभी भी गरीबी में रहते हैं।  संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, जिसने देशों के लिए एक बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (एमडीपीआई) तैयार किया, ने कहा कि भारत में बहु-आयामी गरीबी 2005-06 में 55.1 प्रतिशत (640 मिलियन) के उच्च स्तर से गिरकर 27.9 प्रतिशत (369) हो गई  मिलियन) 2015-16

ये सब सूचकांक रोटी कपड़ा और मकान से संबंधित है या फिर इसमें जीवन जीने के लिए कुछ आधारभूत चीजें सम्मिलित है जैसे कि इलेक्ट्रिसिटी, इंधन, इंटरनेट और मोबाइल का उपभोग ।

कोरोना ने गरीबी को नई परिभाषा दी है अब रोटी कपड़ा और मकान से भी ज्यादा आवश्यक वैक्सीन या कोरोना से बचाने वाली दवा है । भूख से मरने वालों की संख्या कोरोना से मरने वालों की संख्या की तुलना में कम है भूख से ज्यादा खतरनाक कोरोना हो गया है तो क्या अब गरीबी सूचकांक मे  कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए आवश्यक दवा, वैक्सीन व चिकित्सा सुविधाओं को भी सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए और अगर ऐसा किया जाता है तो 99% भारतीय गरीब है ।

खाने मे मात्र प्रयाप्त कैलोरी देने वाला खाना अब सम्पूर्ण खाना नही है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को उस स्तर तक बनाए रखने वाले पोषक तत्वों युक्त खाना ही सम्पूर्ण खाना है कम रोग प्रतिरोधक क्षमता कुपोषण की स्थति है ।

अगर बात कपड़े की जाए तो अब रोज एक N 95 मास्क की आवश्यकता है एम्स के कुछ डॉक्टर तो दो  मास्क लगाने का सुझाव भी दे रहे हैं, ऐसे में यदि एक मास्क की कीमत ₹50 हो और 2 मास्क रोजना लगाया जाए तो महीने मे  प्रति व्यक्ति ₹3000 की अतिरिक्त आवश्यकता होगी,  किसी परिवार के पास केवल मास्क खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति ₹3000 नहीं है तो वह गरीब हैं ।

अब परिवार के हर एक व्यक्ति को अलग से अटैच बाथरूम वाला कमरा चाहिए क्योंकि कब कौन  संक्रमित हो जाएं और किसको आइसोलेशन में रहना पड़ जाए यह किसी को नहीं पता ।अब  ऐसे घर की आवश्यकता हो गई है जहां जरूरत पड़ने पर परिवार का हर एक सदस्य आइसोलेशन में रह सके । क्या सभी भारतीयों के पास ऐसे मकान है? ऐसे मे उस  परिवार को करीब मान लिया जाए जिसके पास पर्याप्त कमरों वाला बड़ा घर नहीं है तो गरीबी की नई परिभाषा में कितने लोग सम्मिलित होंगे इसकी गणना करना मुश्किल है ।

संक्रमण के इस युग में पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन भी व्यर्थ साबित हो रहा है अब हर एक व्यक्ति को प्रथक  वाहन की आवश्यकता है, वाहन की आवश्यकता केवल विलासिता के लिए नहीं बल्कि स्वयं को स्वस्थ रखने व संक्रमण  से बचाने के लिए है इसलिए उसे जरूरी मान लिया जाना चाहिए तो क्या उस हर व्यक्ति को गरीब मान लिया जाए जिसके पास अपना वाहन नहीं है सोचिए कौन-कौन इस गरीबी की परिधि में आ जाएगा 

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